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Saturday, August 30, 2014

भगवतीचरण वर्मा : नमन

जब मैं छपरा में स्कूल में ही पढ़ रहा था, हिंदी में पहला उपन्यास मैंने पढ़ा था – चित्रलेखा”. एक साँस में पूरा उपन्यास पढ़ गया था’ क्योंकि उससे कुछ ही पहले १९४१ में बनी  चित्रलेखाफिल्म भी देखी थी – सोहराब मोदी के निर्देशन वाली, जिसकी हिरोइन थी महताब, और जिसमे रामदुलारी का गाया मशहूर गीत था नीलकमल मुस्काए रे भवंरा. फिल्म का  संगीत उस्ताद झंडे खां ने दिया था और शुद्ध भैरवी और असावरी रागों पर उसका संगीत सजाया गया था. बचपन की इन सारी स्मृतियों को लेकर जब मैं अपने पिता के साथ १९५० में पटना चला आया उसके दो साल बाद वहां यूनिवर्सिटी में पढने लगा था. पिता के साथ वहीँ हिंदी साहित्य सम्मलेन में ही रहना होता था. वहां हिंदी के बड़े से बड़े साहित्यकारों के दर्शन हुआ करते थे. फोटोग्राफी का शौक मेरे सर पर सवार था और उन दिनों के खींचे बहुत सारे अत्यंत मूल्यवान चित्र मेरे संग्रह में सुरक्षित हैं.

यह एक चित्र मार्च १९५४ का है जब भगवतीचरणजी मेरे पिता से मिलने सम्मलेन भवन में आये थे. मेरे पिता उन दिनों अस्वस्थ थे. मेरे खींचे इस चित्र में भगवतीचरणजी और जानकीवल्लभ शास्त्री के साथ अनूपलाल मंडल, रामगोपाल शर्मा रूद्र आदि हैं. भगवतीचरणजी दूसरी बार फिर जुलाई १९५९ में आये थे जब सम्मलेन भवन में ही उन्होंने तब की प्रख्यात श्रीमती बच्चनदेवी साहित्य गोष्ठी में आधुनिक हिंदी काव्य विषय पर अपना व्याख्यान दिया था. यह साहित्य गोष्ठी आ. शिवपूजन सहाय ने १९५४ में अपनी पत्नी (मेरी माता) की स्मृति में लोकार्पित किया था. भगवतीचरण जी ने कई फिल्मों की स्क्रिप्टें भी लिखी थीं. गूगल में जाने पर बहुत सी और बातें जानी जा सकती हैं. ५-६ खण्डों में भूले-बिसरे चित्र भी उनकी एक अमर  कृति है. इन हिंदी के महान लेखकों को हमें सिर नवा कर याद करना चाहिए.
   
मैं अपने इस पृष्ठ पर अपने मित्रों, परिजनों के लिए इन छोटे-छोटे स्मृति-मनकों की एक माला गूंथना चाहता हूँ जिससे ये स्मृतियाँ संजोई जा सकें. इंटरनेट पर ये चीज़ें अधिक सुलभ और द्रष्टव्य रहेंगी. मैं अपने ब्लॉग पर भी इन्हें अंकित कर देता हूँ जिसे कभी भी देखा जा सके. किताबों और पत्रिकाओं में ये सुविधा नहीं हो सकती. फिर आजकल सोशल नेटवर्क पर तो हर कोई देखता-पढता है. मेरे इस पृष्ठ पर आपका बार-बार स्वागत है.
   
भगवतीचरण जी का यह दुर्लभ चित्र मेरे लिए एक थाती है. मैं तो चाहता हूँ सरकारी साहित्यिक संस्थाएं ऐसे सभी साहित्यिक चित्रों की खोज करें, मूल्य देकर कापीराईट ले लें और उनका डिजिटल संग्रहालय बनावें. ऐसा ही  काम कलाकारों और संगीतकारों के लिए भी होना चाहिए. भगवतीचरण जी की इस १११ वीं जयंती पर यह एक शुभ-संकल्प होगा.           

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