महाप्रस्थान !
श्रीमती उषाकिरण खान
[१९४५-२०२४]
हर पीढ़ी के जीवन में पतझड़
का एक मौसम आता है, जब लगातार एक तरह की बर्फ़बारी के बीच पेड़ की डालें पर्ण-विहीन
हो जाती हैं | एक बार १९५०-६० के दशक में भी ऐसा हुआ था जिसमें काल के पतझड़ में एक
के बाद एक कितने पत्ते झड़ते गए थे जिनका लेखा-जोखा ‘साहित्य’ की अपनी शोक-संस्मरण-टिप्पणियों में शिवपूजन सहाय ने
लगातार कई अंकों में प्रकाशित किया था | इस अवधि में` – १९५५ से १९६२ के बीच -
दिवंगत होने वाले पुरानी पीढ़ी के साहित्यकारों में थे बाबू राव विष्णु पराड़कर, पं.
रूप नारायण पाण्डेय, आ. चन्द्रबली पाण्डेय, पं. कृष्ण बिहरी मिश्र. पं. प्रमोद शरण पाठक, पं. देवीदत्त शुक्ल, आ. क्षितिमोहन सेन, लक्ष्मण नारायण गर्दे, रामनरेश त्रिपाठी, पुरुषोत्तम दास
टंडन प्रभृति - कोई बीसेक इन दिवंगत साहित्यकारों पर शिवजी ने मर्मान्तक
शोक-टिप्पणियाँ लिखी हैं, जो अब उनकी संस्मरण-पुस्तक ‘स्मृति-शेष’ में और ‘शिवपूजन सहाय साहित्य-समग्र’ (खंड २) में
संगृहीत हैं | निराला और नलिन
विलोचन शर्मा का निधन भी इसी अवधि में हुआ था | नलिन जी के निधन के प्रसंग में शिवजी
की एक मार्मिक टिप्पणी उद्धरणीय है |
“एक दिन
बिहार-हिंदी-साहित्य-सम्मलेन के अनुशीलन-कक्ष में हम दोनों बैठे थे | उन्होंने
सहसा कहा कि ‘साहित्य’ के सम्पादकीय स्तम्भ में स्वर्गीय साहित्य सेवियों पर लिखी आपकी संस्मरणात्मक
टिप्पणियाँ मुझे बहुत पसंद हैं | मैंने कहा कि आपकी पसंद ही उनकी सार्थकता है;
किन्तु मेरे निधन पर आपको भी वैसी ही टिपण्णी लिखनी पड़ेगी | छोताते हो बोल उठे कि
कहीं आपको ही मेरे लिए लिखना पद गया तो आपकी अभ्यस्त लेखनी मुझसे बाजी मार ले
जाएगी |”...
ऐसा दुर्योग कि उसके कुछ ही
दिन बाद नलिन जी का १२ सितम्बर १९६१ को देहांत हो गया | शिवजी ने अपनी डायरी में
अंकित किया :
“आचार्य नलिन विलोचन शर्मा
का आकस्मिक निधन हो गया | कलेजा काँप उठा | देह थरथराने लगी | मस्तिष्क अर्वथा
शून्य हो गया |तुरंत वहां पहुंचा | उनका शव देखकर करुना का बंधन टूट गया | मैं
अश्रु-प्रवाह न रोक सका | उनकी अरथी में कन्धा लगा कर घर के चौपाल से सड़क तक ले
आया |...
शिवजी के जीवन के भी कुल
डेढ़ साल शेष थे | ‘साहित्य’ के ‘नलिन विलोचन शर्मा स्मृति-अंक’ के संपादन में, अपने तेजी से गिरते
स्वास्थ्य में भी, उन्होंने दिन-रात परिश्रम किया | इसी बीच, महीने भर बाद १५
अक्टूबर को निराला जी का देहांत हो गया | शिवजी ने डायरी में लिखा – “नलिनजी का
घाव अभी हरा ही था, निरालाजी के निधन ने उसमें बड़ी क्रूरता से नख लगा दिया | कलेजे
पर अंगार रख गया कोई !”
कुछ ऐसा ही दुर्योग इधर
कोरोना-काल में या उससे कुछ पहले और बाद में भी आया है जब हिंदी साहित्य की एक
जाज्वल्यमान परवर्त्ती पीढ़ी के साहित्यकारों – डा. नामवर सिंह, डा. मेनेजर पाण्डेय, विष्णु खरे, केदारनाथ सिंह, गिरिराज किशोर, मंगलेश डबराल, राजकिशोर, रमेश उपाध्याय आदि, और गए कल में उषाकिरण खान का
महाप्रस्थान हुआ है |
मिथिला क्षेत्र ने हालिया
पुरानी पीढ़ी में हिंदी को कई ख्यातिलब्ध साहित्यकार दिए हैं – जनार्दन झा ‘जनसीदन’, बालकृष्ण मिश्र, गंगानाथ झा, अमरनाथ झा, हरिमोहन झा, भुवनेश्वर सिंह ‘भुवन’ आदि | उसी परंपरा में २१वीं सदी में सर्वाधिक सुविख्यात
नाम उषाकिरण खान का है | उनके पति श्री
रामचंद्र खान मुंगेर के दिनों से मेरे आत्मीय थे, और मेरे पिता की स्मृति में
स्थापित “आ. शिवपूजन सहाय स्मारक न्यास’ (१९९३) के प्रारम्भिक सम्मान्य सदस्य रहे | कुछ ही दिन पहले वे दिवंगत हुए थे
| उन दोनों पति-पत्नी की एक दूसरे को फूल भेंट करते एक बहुत प्यारी तस्वीर नेट पर
लगी है | रामचंद्र खान के निधन के बाद उषाजी को हमलोगों ने न्यास के सदस्य के रूप
में मनोनीत कर लिया था |
मेरा संपर्क पटना में उनसे
यदा-कदा नियमित होता था | उम्र में मुझसे छोटी होने पर भी मेरे लिए वे बराबर ‘दीदी’ ही रहीं, और वे भी मुझको बराबर ‘भाईजी’ ही पुकारा करती थीं
| वे आज के बिहार में देश-स्तर पर सर्वाधिक ख्यातिलब्ध एवं अभ्यर्थित साहित्यकार
रहीं | पति-पत्नी दोनों से आत्मीय होने के कारण मेरा उनसे एक पारिवारिक सम्बन्ध
बराबर बना रहा | उनकी किताबें जब भी प्रकाशित होतीं उसकी हस्ताक्षरित प्रति वे
मुझे अवश्य देतीं | वे एक सम्पूर्ण सार्थक रचनाशील जीवन व्यतीत कर पति का अनुसरण
करती हुई गयीं | इस नश्वर जीवन को अपनी अन्यतम सृजनशीलता से गरिमामय बनाते हुए
उनका महाप्रस्थान एक संश्लिष्ट संवेदनात्मक अनुभूति है |
लखनऊ भी वे बराबर आती थीं | एक बार २०१६ में जब २१ जनवरी को आ. शिवजी की पुण्यतिथि के अवसर पर न्यास की ओर से लखनऊ में साहित्यिक समारोह आयोजित हुआ तब उनको ‘श्रीमती बच्चन देवी साहित्य-गोष्ठी सम्मान’ प्रदान किया गया था | उस समारोह में डा. मेनेजर पाण्डेय का ‘आ.शिवपूजन सहाय स्मारक व्याख्यान’ ‘मुग़ल बादशाहों की हिंदी कविता’ विषय पर हुआ था | उस समारोह की कुछ तस्वीरें यहाँ आप देख सकते हैं | मैं पिछले दिनों जब पटना गया था और उनसे मिलने के लिए फोन किया तो उनके सुपुत्र तुहिन शंकर ने बताया कि वे बहुत गंभीर रूप से बीमार अस्पताल में भरती हैं | मैं पल-पल उनके स्वस्थ होने की प्रार्थना करता रहा, लेकिन लखनऊ लौटते ही उनके देहांत का समाचार फेसबुक से मिला | मेरा अपना जीवन भी अब संध्या-गामी है | मैं चाहूँगा ‘दीदी’ उषाकिरण खान की स्मृति में पत्रिकाओं के विशेषांक निकलें जिनमें उनके संस्मरण और साहित्यिक अनुशीलन प्रकाशित हों | नारी-विमर्श के क्षेत्र में उनके द्वारा संस्थापित संस्था ‘आयाम’ इस दिशा में अवश्य प्रयासशील होगी, ऐसी आशा है |
आलेख एवं चित्र (C) आ. शिवपूजन सहाय स्मारक न्यास
No comments:
Post a Comment