विगत ३-४ वर्षों में विशेषतः हिंदी साहित्य में साहित्य-जीवियों के महाप्रयाण
की एक त्रासद निरंतरता देखने में आई है – केदारनाथ सिंह, नामवर सिंह, विष्णु खरे, मंगलेश डबराल, ऐसे कई नाम
हैं इस त्रासद श्रृंखला में, कल जिसमें एक और कड़ी जुड़ गयी डा. मेनेजर पाण्डेय के
नाम की | साहित्य में यह एक युग के अवसान जैसा है | हिंदी साहित्य में एक ऐसा ही
पतझड़ आया था १९५८-’६२ में जिसमें इसी प्रकार की त्रासद निरंतरता में हिंदी के
मूर्धन्य साहित्य-सेवियों की एक पीढ़ी का महाप्रस्थान हुआ था, जिन पर आचार्य
शिवपूजन सहाय के शोक-संस्मरणों की एक श्रृंखला ही उस समय ‘साहित्य’ पत्रिका में कई अंकों में प्रकाशित होती रही थी जिसमें पं.
रूप नारायण पाण्डेय, पं. कृष्णबिहारी मिश्र, पं. प्रमोद शरण पाठक, पं. देवीदत्त शुक्ल, पं. लक्षण नारायण गर्दे, पं. रामनरेश
त्रिपाठी,आ. चतुरसेन शास्त्री, आदि जैसे प्रतिष्ठित
साहित्यकारों पर शिवजी ने अविस्मरणीय शोक-संस्मरण लिखे थे |
ऐसी हर पीढ़ी अपने समय में अपनी हिंदी-सेवा से हिंदी साहित्य को विशिष्ट
समृद्धि प्रदान करती है, और पं. हजारी प्रसाद द्विवेदी के युग के इन
साहित्य-सृजकों की पीढ़ी ने भी उस समृद्धि में अत्यंत मूल्यवान अभिवृद्धि की है,
जिसका पूर्णतर मूल्यांकन अभी आगे भी होगा | इस हालिया पीढ़ी के तीन नाम – डा. नामवर
सिंह, डा. केदारनाथ सिंह और डा.
मैनेजर पाण्डेय ने अपने लम्बे और अति विशिष्ट विश्वविद्यालयीय प्राध्यापन के दौरान
और अपनी सुदीर्घ शिष्य-परम्पराओं द्वारा तथा अनेकानेक सेमिनारों, संगोष्ठियों, साहित्यिक
समारोहों में प्रदत्त अपने महत्त्वपूर्ण व्याख्यानों द्वारा जो महत्त्वपूर्ण
योगदान दिया है, वह अब अपनी मिसाल आप है, और सहज ही अनुमेय है कि उनका वैसा महार्घ
अवदान आगे की पीढ़ियों के लिए एक क्रोश-शिला के रूप में गौरवशाली बना रहेगा – एक
प्रेरक प्रकाश-स्तम्भ की तरह |
कल से ही फेसबुक पर श्रद्धांजलि-आलेखों का क्रम चल रहा है | डा. पाण्डेय से
मेरा परिचय भी दशकों पुराना रहा है | वे हमारे आ. शिवपूजन सहाय स्मारक न्यास के
साहित्यिक परामर्श मंडल के सदस्य भी रहे | जब जनवरी, २०११ में दिल्ली में ‘शिवपूजन सहाय साहित्य समग्र’ का लोकार्पण हुआ था उस
अवसर पर भी डा. नामवर सिंह और डा. विश्वनाथ त्रिपाठी के साथ डा. पाण्डेय का भाषण
हुआ था जिसकी रिकॉर्डिंग न्यास के संग्रहालय में है | उससे पूर्व २००८ में
जे.एन.यू. में मेरी एक पुस्तक के लोकार्पण में भी डा. पाण्डेय उपस्थित हुए थे |
आगे दो और अवसर आये जब उनके साहचर्य का संयोग मुझको प्राप्त हुआ | जनवरी २०१६ में.
लखनऊ में, आ. शिवजी जी की पुण्यतिथि
के समारोह में वे हमारे विशिष्ट अतिथि हो कर आये जिसमें उनका प्रभावकारी स्मारक
व्याख्यान – ‘मुग़ल बादशाहों की हिंदी कविता’ पर हुआ था | उस समारोह में प्रसिद्ध लेखिका डा. उषाकिरण खान को ‘श्रीमती
बच्चन देवी साहित्य गोष्ठी सम्मान’ प्रदान किया
गया था | फिर उसी वर्ष सितम्बर में जब हिंदी विभाग, लखनऊ विश्विद्यालय, द्वारा
उनकी ७५ वीं जयंती मनाई गयी थी, उस समारोह में भी मैं उनके साथ उपस्थित रहा,
जिसमें उनकी विदुषी सुपुत्री डा. रेखा पाण्डेय भी उनके साथ थीं |
इधर जबसे डा. पाण्डेय अस्वस्थ्य हुए रेखाजी से मैं बराबर संपर्क में रहा | अभी
कुछ दिन पहले फोन पर उनसे ज्ञात हुआ था कि डा. पाण्डेय अब अस्पताल से घर आ गए हैं,
यद्यपि स्वास्थ्य में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ है | उन्हें लगातार वेंटीलेटर
पर रहना पड़ रहा था और ऐसा आभास होने लगा था कि यह उनकी अंतिम बीमारी है | अंततः कल
वे अपनी अनंत यात्रा पर प्रस्थित हो गए |
हिंदी को और उनकी शिष्य परंपरा को डा. मैनेजर पाण्डेय का अवदान अत्यंत महत्त्वपूर्ण और गरिमामय है, जिसकी चर्चा कई आलेखों में हुई है | मैं आ. शिवपूजन सहाय स्मारक न्यास की ओर से उनकी स्मृति में यह शोक-प्रस्ताव व्यक्त करना चाहता हूँ और व्यक्तिगत रूप से भी अपनी श्रद्धांजलि उनकी पुण्य-स्मृति को समर्पित करता हूँ | लखनऊ आगमन के उनके कुछ चित्र यहाँ देखे जा सकते हैं | हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के शिखरस्थ आलोचकों में डा. मैनेजर पाण्डेय का स्थान सदा अनन्य रहेगा और वे सदा के लिए हिंदी साहित्याकाश के एक ज्योतित नक्षत्र रहेंगे |
(C) चित्र/आलेख: डा. मंगलमूर्ति
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